खुशहाल जिन्दगी का मूलमंत्र


डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित
हर इंसान अपनी जिंदगी में सुख चाहता है। वह पहले अपने सुख के लिए रात दिन मेहनत करता है। सारे सुख के साधन एकत्रित करता है। अपने परिवार के हर सदस्य को वह खुश देखना चाहता है। हर दिन इंसान जिंदगी की जंग लड़ता है। कभी गिरता है तो कभी उठता है।सम्भल कर फिर चलने लगता है।जिंदगी में ये उतार चढ़ाव आते ही रहते हैं। जिंदगी किराये के घर की तरह है एक न एक दिन बदलना ही पड़ता है। मौत जब आवाज देगी घर से बाहर निकलना पड़ेगा। म्रत्यु अंतिम सत्य है। इसलिए जीवन संघर्ष में मौत से कभी न डरो। जो धरती पर आया है उसे जाना है। जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले खिलौना। इसलिए जितने दिन जियो ऐसे काम करो जो मरने के बाद भी लोग आपको याद करे। अच्छे काम परहित के काम करो। ओरों के लिए जीना सीखो। इंसान हो तो इंसनियत के गुण रखो। दया प्रेम भाईचारा सहयोग करुणा मैत्री संवेदनशील बने रहो। मानवीय गुण हो तभी सही मायने में इंसान कहलाओगे।
आजकल हम छोटी छोटी बातों से घबराकर तनाव में आ जाते हैं।हमारे अंदर जरा भी सहन करने की ताकत नहीं रही तनाव पाल कर नकारात्मक सोचने लगते हैं। माइग्रेन सिर दर्द की बीमारी पाल लेते हैं। खुद भी दुखी रहते हैं औरों दूसरों को भी दुखी करते हैं। अरे सकारात्मक सोच रखो। घबराओ नहीं। आशावादी बनो। अवसाद तनाव चिंता इन शब्दों को जीवन में न आने दो।जितनी जरूरत हो उतनी वस्तुएं लाओ। व्यर्थ संग्रह मत करो।नियमित दिनचर्या के अनुसार कार्य करो। परिवार में अपने बालक बालिका को समय जरूर दो। उनसे बात करो। उनके साथ रहो। हो सके तो संयुक्त परिवार में रहो। साथ मे रहोगे तो एकता बनी रहेगी। बच्चों को दादा दादी का प्यार मिलेगा संस्कार मिलेंगे। धन के लालच में रिश्ते कमजोर न करो। ये जिंदगी अपनत्व के साथ मिलकर गुजारो। देखिए जीवन मे आनद ही आनंद होगा।
जीवन मे खुशहाल रहने का एक ही मूलमंत्र है अपनी आदतों में बदलाव करते रहें। नई पीढ़ी व पुरानी पीढ़ी में वैचारिक तालमेल बिठाकर चलें।
-डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित
साहित्यकार
भवानीमंडी