प्रेम ,,प्यार और धोखा
एक चिंतन

ममता श्रवणअग्रवाल
आज अगर हम अपने आस पास नजर घुमायें तो हम देखेंगे कि एक तरफ हमारी युवा पीढ़ी शिक्षा के क्षेत्र मे बहोत आगे जा रही है और ऊंचाइयों के शिखर को छू रही है और फिर वही शिक्षित और सफल बच्चे या अन्य दूसरे भी जीवन के अन्य मापदंडों ,मसलन विवाहित जीवन में विवाह या विवाह पूर्व भी कहीं न कहीं असफल भी हो रहे हैं और यह असफलता उन्हें इस तरह तोड़ देती है कि कई बार ये आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं ।
आइये थोड़ा इस विषय में गहन चर्चा करें।
आज जब हम युवा वर्ग में प्यार की बात करते हैं ,तब हम देखेंगे कि यह भाव मूलतः है तो पवित्र पर,यह कभी भी सरलता से सफल नही हो पाया ।कारण है इस पर लगे बन्धन।कभी ये बन्धन जातिगत रहा तो कभी समाजगत या कभी अमीर गरीब के भाव से बंधा हुआ पर बन्धन हमेशा रहा है और यही कारण था कि प्रेम के अतिरेक में प्रेमी प्रेमिका बिना सोचे समझे एक दूसरे से जुड़ तो जाते हैं और प्रेम की पूर्णता न होने पर आत्मघात तक जैसा कदम उठा लेते हैं।यहाँ जो विषय है वह यह भी है कि धोखा।
मुझे ऐसा नही लगता कि प्रेम में धोखा ज्यादा होता है बल्कि ऐसा लगता है कि मजबूरी ज्यादा होती है जिससे सामने वाला धोखा समझ लेता है और कई बार धोखा भी हो जाता है ।लेकिन मुख्य बात जो कहनी है वह यह कि जीवन, प्रेम से भी आगे है और बहोत आगे है ।अतः यदि किसी के साथ कोई ऐसी घटना घट जाती है ,तो वह क्षणिक आवेश में जीवन की इति न कर ले बल्कि नये ढंग से जीवन की शुरुआत करे क्योंकि प्रेम से भी आगे जीवन में बहुत कुछ करना है ।
प्रेम जीवन की पूर्णता नही है ।जीवन खुद जीने और दूसरों को जीवन देने का नाम है ।
अतः यदि प्रेम में पूर्णता मिल गई है तो उसे प्रभु की इनायत समझे और नही मिली तो प्रभु की इबादत समझें कि कहीं हममें ही कोई कमी थी और जीवन पथ में आगे बढ़ जाएं।
प्रेम जीवन का क्षण है अनुपम,
पर यह नहीं है जीवन की इति।
अतः समझ कर जीवन का मोल,
जीवन को दे अनुपम प्रगति।।
धन्यवाद
ममता श्रवण
अग्रवाल
अपराजिता
साहित्यकार
सतना8319087003