प्रीति चौधरी”मनोरमा”
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माँ शब्द एक ऐसा शब्द है, जिसमें समस्त सृष्टि का सार निहित है। माँके विषय में जितना भी लिखा और पढ़ा गया है, वह माँ के महत्व को दर्शाने के लिए कम ही है। यदि माँ शब्द की गहराई को समझना है,तो हमें माँ के सानिध्य में रहकर उसके गुणों, विशेषताओं, प्रकृति, धैर्य, सहनशीलता इत्यादि का गहनता से अवलोकन करना होगा। माँ धरती पर ईश्वर का अवतार है, एक पिता उस दिन पिता बनता है, जब बच्चा जन्म लेता है, किंतु माँ का संबंध बालक से उसी दिन जुड़ जाता है, जिस दिन वह बालक को अपने गर्भ में पोषित करना शुरू करती है। माँ और संतान का रिश्ता हृदय से हृदय का होता है। यह आत्मिक संबंध होता है। माँ अपने बालक के मनोभावों को दूर रहते हुए भी भली-भाँति समझ लेती है ।यदि बालक दुखी है, तो माँ को स्वप्न में आभास हो जाता है। यदि बालक बीमार होने वाला है, तब भी माँ पूर्वानुमान लगा लेती है। माँ के पास एक दैवीय शक्ति है, इस चमत्कारिक शक्ति से वह हर क्षण बालक को ममता और वात्सल्य का सागर प्रदान करती है। हम माँ-बाप का कर्ज जीते जी नहीं उतार सकते हैं। माँ- बाप ने हमें यह सुंदर दुनिया दिखाई, अच्छे संस्कार दिए ,शिक्षा दी, भले -बुरे का ज्ञान कराया ।
माँ ही बालक की प्रथम शिक्षिका होती है। वही बालक को बोलना सिखाती है …चलना सिखाती है … प्रत्येक परिस्थिति से लड़ना सिखाती है… बालक माँ के सानिध्य में सर्वाधिक रहता है ।
“मदर्स डे” का प्रचलन अब हो गया है, किंतु यदि हम गहनता से सोचें, तो प्रत्येक दिवस मातृ दिवस होता है। हर दिन माँ की महत्ता को वर्णित करने का होता है। माँ की महिमा का गुणगान करने के लिए केवल एक दिन नियत कर देना सही नहीं है।
माँ ही शक्ति का स्वरूप है। माँ के अद्भुत गुणों को शब्दों से वर्णित कर पाना नितांत दुष्कर कार्य है।
आज मैं प्रधानाध्यापिका के पद पर कार्यरत हूँ ,एक सफल लेखिका हूँ,कुशल ग्रहणी हूँ,और एक सुखद गृहस्थ जीवन का आनंद ले रही हूँ। किंतु इस सबका श्रेय मैं अपनी माँ श्रीमती चंद्रमुखी देवी जी को देना चाहूँगी। जिन्होंने पग-पग पर मेरा मार्गदर्शन किया ,उन्होंने पढ़ाई -लिखाई से लेकर जीवन की वास्तविक परीक्षा में कैसे उत्तीर्ण हुआ जाए, इस बात से मुझे अवगत कराया। जब- जब मेरा मनोबल टूटा, उन्होंने मुझे आत्मविश्वास प्रदान किया। जब-जब अंधेरी राहों में मैं भयभीत हुई ,उन्होंने मुझे साहस दिया… ज्ञान की दिव्य ज्योति प्रदान की.. और मेरे जीवन रूपी पथ को आलोकित कर दिया।
अंत में माँ शब्द के लिए चंद पंक्तियाँ समर्पित करती हूँ–
1माँ ममता की खान है, करुणा का भण्डार।
देती हर क्षण रोशनी, जलकर जीवन ज्वार।।
2माँ की महिमा क्या कहूँ, वह है जीवन सार।
पीड़ा उसकी अनकही, नयनों आँसू धार।।
3भूल गए माँ-बाप को, याद रहा बस अर्थ।
धन के पीछे भागते, जीवन करते व्यर्थ।।
4माँ है भूखी मान की, समझो उसकी पीर।
प्रेम भरा उर में घना, गंगा का वह नीर।।
5माँ है देवी नेह की, सुगम बनाती राह।
धन दौलत की कब रही, उसके मन में चाह।।
6जिसको जीवन दे दिया, भूल गया वह लाल।
वृद्धाश्रम में माँ रहे, बेटा है खुशहाल।।
7जिसको पाला गर्भ में, भूल गया वह प्रेम।
बस विदेश में जो गया,क्या पूछे वह क्षेम।।
8पोषण करती दुग्ध से, देती रस की धार।
माँ ही जीवनदायिनी, ईश्वर का अवतार।।
9माँ हर दुख की है दवा, सर्वोत्तम उपहार।
उसके तप के सामने, नतमस्तक संसार।।
10माँ की कर लो आरती, वही परम शुभ धाम।
उसके आशीर्वाद से, बन जाते सब काम।।
प्रीति चौधरी”मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश