युद्ध

डॉ पंकजवासिनी
हुआ था युद्ध कलिंग विकट !
लाशों से गई धरती पट …!!
चहुंओर वीर धराशायी ….!
देख हिय अशोक अकुलाई !!
हुआ हृदय परिवर्तन भूप !
रूप निखरा सम्राट अनूप !!
किया सद्य शास्त्रों का त्याग !
हृदय गई मानवता जाग …!!
त्याग दया धर्म धैर्य नहीं !
अहं विद्वेष से विकल मही!!
जब-जब अहंकार जय प्रबल !
मानवता राह पड़ी विकल!!
लालच का बढ़ता व्यापार …!
हिंसा में जग एकाकार …!!
महत्वाकांक्षा की धर डोर …
युद्ध घुस रहा मानस- पोर !!
युद्ध न लड़े सिर्फ हथियार !
वाणी करती हिय पर वार !!
तोप गोला की न दरकार !
कलम करती घातक प्रहार!!
युद्ध करता मात्र संहार !
मानव करता हाहाकार !!
स्वार्थ की ही सिर्फ खेती …
हा! ये दुनिया क्यों न चेती!!
भूमि नारी हो या हो धन !
इनके हित युद्ध करता जन !!
युद्ध करे भयंकर विनाश !
रुको मनुज कर शांति- प्रयास!!
विश्व शांति की बहे बयार …
विश्व मनुजता में हो प्यार !!
सूनी न होय मां की कोख !
हिंसा की आंधी को रोक!!
कर्तव्य की है आज पुकार !
ठान नहीं युद्ध आर – पार !!
संयम का पाठ विश्व पढ़े…
वैमनस्य तज मित्रता गढ़े!!
डॉ पंकजवासिनी
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग
रामसेवक सिंह महिला महाविद्यालय,सीतामढ़ी
भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर, बिहार