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__देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

हमारी संस्कृति में शक्ति की आराधना का विशेष महत्व है। यहाँ शक्ति का अर्थ आदिशक्ति से है। आदिशक्ति यानी प्राथमिक शक्ति, मूल शक्ति या सर्वोच्च शक्ति। आदिशक्ति जगत जननी माँ दुर्गा को कहा गया है। शक्ति का दूसरा अर्थ ऊर्जा है। शक्ति की आराधना यानी उस ऊर्जा की आराधना या आदिशक्ति माँ दुर्गा की आराधना। यहाँ आराधना से तात्पर्य किसी देवता या इष्टदेव के प्रति की गई दया की याचना है। यों तो ऊर्जा की आराधना का श्रीगणेश प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों के द्वारा की गई थी। इस आराधना के द्वारा उसकी समस्त कृपा को प्राप्त करने हेतु माँ शब्द का उद्भव हुआ।एक बात दीगर है कि माँ शब्द में वात्सल्य भाव है। यही कारण है कि नवरात्र में शक्ति की आराधना माँ के रूप में की जाती है। इस प्रकार से अनंत ऊर्जा की कृपा प्राप्त करने के लिए शक्ति की पूजा की जाती है। नवरात्र में भक्तजन अपनी आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति संचय करने के लिए अनेक तरह से व्रत, संयम, नियम, यज्ञ, भजन, पूजन, योग-साधना इत्यादि करते हैं। श्रीमद् देवी भागवत पुराण में ऐसा उल्लेख है कि जब मानव के साथ- साथ देवगण भी असुर के अत्याचार से परेशान हो गए थे तब सभी देवता त्राहिमाम करते हुए सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी के पास गए और आसुरी शक्ति से बचने का समाधान पूछा। तब ब्रह्माजी ने बताया कि दैत्यराज का बध एक कुंवारी कन्या के साथ से ही हो सकता है। सभी देवता आश्चर्य में पड़ गए। ब्रह्मा जी ने पुनः कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है। आप सभी देवगण मिलकर अपने तेज पुंज को एक जगह समाहित करें। देवताओं ने ऐसा ही किया। उस महान तेज पुंज से सुन्दर आकृति वाली महामाया प्रकट हो गईं। उसके बाद उस आदिशक्ति ने असुरों का संहार किया। भक्तजन नवरात्र में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं। प्रथम शैलपुत्री से लेकर नवम सिद्धिदात्री माँ की आराधना करके अभीष्ट व मनोवांछित वर की प्राप्ति करते हैं।
“या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।” कहकर मंगलकामना व मन की शुद्धि करते हैं।
आराधना का महत्व: जब हम किसी इष्ट की आराधना करते हैं तो उसके पीछे कुछ न कुछ उद्देश्य होता है और उस आराधना का महत्व होता है। इसके महत्व को निम्नलिखित शीर्षकों के अंतर्गत रखा जा सकता है:
- शक्ति की आराधना से हमें बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- आराधना से मन को शांति मिलती है।
आदिशक्ति की प्रतिदिन आराधना से सकारात्मक ऊर्जा एवं आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है। - सारे रोग शोक व कष्ट दूर होते हैं।
- नवरात्र में महाशक्ति की उपासना कर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति प्राप्त की थी।
- नवरात्र में भक्तजन उपवास रखते हैं। यहाँ उपवास का अर्थ निकट तथा वास का अर्थ निवास करना है। अर्थात् उपवास रखने से आदिशक्ति से निकटता बढ़ जाती है। ईश्वर से संबंध प्रगाढ़ हो जाता है।
- भक्तजन को लोक मंगल के क्रियाकलाप से आत्मिक व सुखद अनुभूति की प्राप्ति होती है।
- चैत्र मास प्रकृति में नूतन बदलाव का सूचक है।
आदिशक्ति की उपासना से हम अपने नकारात्मक विचार को दूर करते हैं तथा प्रेम, करुणा, परोपकार जैसे मानवीय गुणों को ला सकते हैं। - आदिशक्ति की उपासना से मानव कल्याण- मार्ग की दिशा में अग्रसर हो सकता है।
- शक्ति की उपासना मन के शुचिमय भाव से
करने से जीवन में समृद्धि आती है। - पुराण के अनुसार आदिशक्ति दुर्गा की कृपा से मूर्ख उतथ्य प्रकांड पंडित हो गया था।
वाकई आदिशक्ति माँ दुर्गा की आराधना के बहुत सारे महत्त्व हैं। हमें उन आदिशक्ति भगवती जगदम्बिका की सदा भक्तिपूर्वक उपासना करनी चाहिए। वे परा शक्ति ही सारे जगत् की कारण हैं। इसके साथ-साथ हमें वर्तमान में नारी शक्ति पर भी ध्यान देना चाहिए। क्योंकि कहा गया है: “यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।” अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवतागण निवास करते हैं। हमें नारियों की रक्षा करनी चाहिए तथा अंतर्मन को पवित्र रखकर आदिशक्ति की आराधना करनी चाहिए। नारी सदा से ही वंदनीय व पूजनीय है। शक्ति की आराधना यानी नारी की सतत सुरक्षा का संकल्प, मन के बुरे भाव-विचार का परित्याग, बुद्धि व ज्ञान का परिष्कार, एक सुंदर व स्वस्थ समाज का निर्माण।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार