हिन्दुवा सूर्य महाराणा प्रताप

माई एहड़ा पूत जण जेहड़ो राणा प्रताप। अकबर सूतो आंझके जाण सिराणे सांप
-डॉ. राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”
कवि, साहित्यकार
मनुष्य का गौरव व आत्म सम्मान उनकी सबसे बड़ी कमाई है ।उसकी रक्षा करनी चाहिए। नित्य अपने लक्ष्य परिश्रम और आत्मशक्ति को याद करने पर सफलता का मार्ग सरल हो जाता है।जो अपने व परिवार की छोड़ जो राष्ट्र के बारे में सोचे वही सच्चा नागरिक है। ये महान विचार थे वीर शिरोमणि हिन्दुवा सूर्य महाराणा प्रताप के।
महाराणा प्रताप का नाम याद आते ही राजस्थान की वीर प्रसूता भूमि राजस्थान का दृश्य सामने आ खड़ा होता है। मेवाड़ के शूरवीर राजा प्रताप का नाम इतिहास में अमर हो गया। उन्होंने मातृभूमि की रक्षा हेतु हल्दीघाटी के युद्ध मे मुगलों को धूल चटाई थी।लेकिन मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की।
महाराणा प्रताप का जन्म ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 में हुआ।वे सिसोदिया राजपुर राजवंश के राजा थे।महाराणा प्रताप वीरता शौर्य त्याग पराक्रम दृढ़ प्रण के लिए जाने जाते थे।प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ दुर्ग मेवाड़ में हुआ था जो वर्तमान में राजसमन्द जिले में आता है। प्रताप का विवाह महारानी अजब दे पंवार के साथ हुआ था।उनके पिता महाराणा उदयसिंह व माता महारानी जयवंता बाई थी। जयवंता पाली के सोनगरा अखेराज की बेटी थी।
प्रताप का बचपन भील समुदाय के साथ गुजरा। उन्होंने बचपन मे हो युद्ध कला सीख ली थी। वे बचपन से निर्भीक व साहसी थे।प्रताप का प्रथम राज्याभिषेक 28 फरवरी 1572 में गोगुन्दा में हुआ था।द्वितीय राज्याभिषेक कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था।उनके दो सन्तान थी अमरसिंह प्रथम व भगवान दास ये जयवंता बाई की दोनों संतान थी।
महाराणा प्रताप सिंह मेवाड़ जे 13 वें राजा थे।वे भारत के सब्स यशस्वी राजाओं में से एक माने जाते हैं। उनका जन्म 9 मई 1540 को हुआ था।
अकबर मेवाड़ के माध्यम से गुजरात के लिए एक सुरक्षित मार्ग स्थापित करना चाहता था। अकबर ने महाराणा प्रताप को अन्य राजपूतों की तरह एक जागीरदार बनाने के लिए दूत भेजे।1572 में जलाल खाँ राजदूत आया। 1573 में मानसिंह राजदूत आया। फिर राजा टोडरमल को राजदूत बनाकर अकबर ने प्रताप के पास भेजा था। राणा ने मना कर दिया। सभी दूत निराश लौट गए।इसलिए फिर हल्दीघाटी का बड़ा युद्ध हुआ।
महाराणा प्रताप को उनकी बहादुरी के ये जाना जाता है।18 जून 1 576 कक महाराणा प्रताप व अकबर के मध्य हल्दीघाटी मर युद्ध हुआ। आमने सामने सेना के बीच लड़ाई हुई।अकबर के पास मुगल सेना 2 लाख थी।प्रताप ने 22 हज़ार सैनिकों के साथ महाराणा से बड़ी लड़ाई लड़ी।मुगलों का नेतृत्व मानसिंह ने किया पहले युद्ध मे राजा की सेना परास्त हो गई थी।पुनर्विजय 6 साल बाद 1582 में मुगलों के खिलाफ बड़ी लड़ाई लड़ी गई।जिसमें प्रताप को जीत हांसिल हुई।मुगल हारकर भाग गए ।
हल्दीघाटी राजस्थान के गोगुन्दा के पास है जो संकड़ा पहाड़ी दर्रा है।प्रताप के पास युद्ध के दौरान 3000 घुड़सवार 400 भील धनुर्धारी थे।
हल्दीघाटी के महासमर में मुगल सेना 3500-7800 लोग हताहत हुए।साथ ही युद्ध मे मेवाड़ के 1600 पुरुष हताहत हुए थे।
मेवाड़ सेना के 24000 सैनिकों को 12 साल तक गुजारे का अनुदान उस समय दानवीर भामाशाह ने दिया था । एक दिन के युद्ध मे 17000 लोग मारे गए।
प्रताप ने छापामार युद्ध प्रणाली का युद्ध मे प्रयोग किया।7 माह तक अकबर मेवाड़ रहा लेकिन खाली हाथ अरब चला गया।
प्रताप का घोड़ा चेतक ने युद्ध मे अपना कौशल दिखाया। चेतक ने युद्ध अद्वितीय स्वामिभक्ति बुद्धिमत्ता व वीरता का परिचय दिया। युद्ध मे बुरी तरह से घायल होने पर भी चेतक महाराणा प्रताप को युद्धभूमि से सुरक्षित बाहर ले आया था। चेतक एक बरसाती नाले को पार कर अंततः वीरगति को प्राप्त हुआ था।मेवाड़ की सेना में 15000 अश्वरोही 100 हाथी 20 हज़ार पैदल 100 वाजित्र थे।
अकबर का दरबारी कवि पृथ्वीराज राठौड़ था लेकिन वह प्रताप का महान प्रशंसक था।
माय एहड़ो पूत जण जेहड़ो राणा प्रताप। आज भी राजस्थान की वीरांगनाएं कहती है पुत्र का जन्म हो तो प्रताप जैसा शूरवीर हो।
-डॉ. राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”
कवि, साहित्यकार
भवानीमंडी जिला झालावाड़
राजस्थान