दिव्यालय एक साहित्यिक यात्रा के पटल पर हुआ आल्हा/वीर छंद का उत्कृष्ट सृजन

प्रीति चौधरी”मनोरमा” (मीडिया प्रभारी ) की एक रिपोर्ट
दिव्यालय एक साहित्यिक यात्रा की कार्यशाला में दिनाँक 5/10/2022 को आल्हा अथवा वीर छंद पर सृजन करके छंद साधकों ने अपनी रचनात्मकता का प्रदर्शन किया। मंच पर आईं रचनाओं की समीक्षा आदरणीय नरेंद्र वैष्णव शक्ति जी द्वारा की गई। उन्होंने सभी रचनाकारों का उत्साहवर्धन किया एवं यथोचित मार्गदर्शन द्वारा उनकी लेखनी को नई दिशा प्रदान की। आइए जानते हैं कार्यशाला का परिणाम-
दिव्यालय एक साहित्यिक यात्रा
दिनाँक -5 / 10/ 2022
समीक्षक – आ नरेन्द्र वैष्णव सक्ती जी
विधा – वीर/ आल्हा छंद
सृजन पंक्ति – हृदय तमस को मिटा रहें हैं , देखो ननकी गुरुवर रोज ।
कलम धार से भरे सभी में , छंद दिव्य के पावन ओज ।।
वीर या आल्हा छन्द गीत
31 मात्रिक 16,15 पर यति ,दो पद चार चरण का छंद
पदांत 21 अनिवार्य।
चौपाई + चौपई = 31 मात्रा भार
"परिणाम"
प्रथम – आद.पूर्णिमा मलतारे जी एवं आद.रश्मि मोयदे “दीप्ती” जी
द्वितीय – आद. निशा ‘अतुल्य’ जी
तृतीय – गीता देवी “गीत” जी
“समीक्षक – नरेन्द्र वैष्णव “सक्ती”
वीर/आल्हा छंद
५/१०/२२
१६/१५
हृदय तमस को मिटा रहे,देखो ननकी गुरुवर रोज।
कलम धार से भरें सभी में, छंद दिव्य के पावन ओज।।
महारथी छंदों के ज्ञाता, प्रभु बालाजी से धनवान।
कर्ण भेंट कर बनते दाता, गुरुवर दे छंदों का ज्ञान।।
लोभ मनुज धन खोजे भटके, गुरु करते छंदों की खोज।
हृदय तमस को मिटा रहे, देखो ननकी गुरुवर रोज।।
भाल सजे चंदन देवों को, फूलों का चढ़ता है हार।
छंद महालय की ईंटों में, छंदों का संचय हो सार।।
बंसी की धुन कान्हा जैसी, उदित भानु सा निखरा ओज।
हृदय तमस को मिटा रहे हैं, देखो ननकी गुरुवर रोज।।
भोले मन के सीधे साधे, अनुशासन को देते मान।
अनुपम दे शिष्यों को शिक्षा, बना रखो गुरुवर की शान।।
हलधर करते श्रम खेतों में, तब कर पाते जन भी भोज।
हदय तमस को मिटा रहे हैं, देखो ननकी गुरुवर रोज।।
पूर्णिमा मलतारे
वीर या आल्हा छन्द गीत
*कलम धार से भरे सभी में, छंद दिव्य के पावन ओज।
*ह्रदय तमस को मिटा रहे हैं, देखो ननकी गुरुवर रोज*
प्रथम नमन गुरु के चरणो में, करना गुरुवर जी स्वीकार।
ज्ञान ध्यान के बनकर दाता, शिष्यों का करते उद्धार।।
छंद गणेशा आप हमारे, रवि किरणों सी भरते सोज।
ह्रदय तमस को मिटा रहे हैं, देखो ननकी गुरुवर रोज।।
छंद बिलासा दिव्यालय तो, मिले हमेशा बन उपहार।
मात्रा गणना दोहा रोला, नित्य सिखाते छंदाचार।।
पंचरत्न से पटल सजाते, करे नये छंदों की खोज।
हृदय तमस को मिटा रहे हैं, देखो ननकी गुरुवर रोज।।
बहन व्यंजना गुरु है ज्ञानी, देख मंजिरी जी संज्ञान।
मृदुल माधुरी छापड़िया जी, रखते हैं सबका ही ध्यान।।
गुरु चरणों की धूल मिले तो, बन जाऍं सब राजा भोज।।
ह्रदय तमस को मिटा रहे हैं, देखो ननकी गुरुवर रोज।।
रश्मि मोयदे, दीप्ती
5.10.2022
वीर /आल्हा छंद
16/15 पर यति दो पद चार चरण , पदांत 21 अनिवार्य
चौपाई+चौपई = आल्हा छंद
हृदय तमस को मिटा रहे हैं, देखो ननकी गुरुवर रोज ।
क़लम धार से भरे सभी में, छंद दिव्य के पावन ओज ।।
मात्रा क्या है गणना क्या है , नहीं समझ थी मुझमें सोच ।
अनजानी सी राह चली मैं, सिल दी सब गुरुवर ने खोच ।।
ज्ञान पिपासा बढ़ती जाती, करती जाने कैसी खोज ।
क़लम धार से भरे सभी में, छंद दिव्य के पावन ओज ।।
लय यति गति सब समझी जब से, गुरुवर का करती आभार ।
छंद ज्ञान की भाषा जानी, सपने करती हूँ साकार ।।
समझ-समझ कर कदम बढ़ाती, नव जीवन में भरती सोज ।
क़लम धार से भरे सभी में, छंद दिव्य के पावन ओज ।।
इक विधान जग का होता है, जीवन मरण लिए है साथ ।
ऐसे ही गुरु राह दिखाते, पकड़ शिष्य का देखो हाथ ।।
सरल बना कर मेरी राहें, कर दी जीवन नैया मोज ।
क़लम धार से भरे सभी में, छंद दिव्य के पावन ओज ।।
निशा अतुल्य
05/10/2022
विधा- वीर /आला (आल्हा) छंद
हृदय तमस को मिटा रहे हैं, देखो ननकी गुरुवर रोज।
कलम धार से भरें सभी में, छन्द दिव्य के पावन ओज।।
ज्ञान नया नित सबको मिलता, यत्न करे जो नित भरपूर।
छन्दों की वर्षा जब करते, हो जाता तम सारा दूर।।
सब साधक नित करते कोशिश, शब्दों को लाते हैं खोज।
कलम धार से भरे सभी में, छन्द दिव्य के पावन ओज।।
तेज फैलता दिव्यालय का, सबके मन में भरे प्रकाश।
कृपा मिले जब गुरु चरणों की, हर उलझन के छूटें पाश।।
रोज समय पर सीखें साधक, चाहे अपना छोडे़ भोज।
कमल धार से भरे सभी में,छन्द दिव्य के पावन ओज।।
अलंकार रस भरते सारे, रचना सदा बढा़ती शान।
धन्यवाद गुरुवर का करते,नित देकर उनको बहु मान।।
“गीत” हृदय से कहती निशिदिन, मान बढे़ गुरुवर का रोज।।
कलम धार से भरे सभी में, छन्द दिव्य के पावन ओज।।
गीता देवी “गीत”
औरैया, उत्तर प्रदेश
बहुत सुंदर