आलेख
चलना संभल संभल के…….

राकेश चन्द्रा
यदि वर्तमान भौतिकवादी सभ्यता का आईना देखना हो तो किसी महानगर की सड़कों पर खड़े हो जाइये। सैकड़ों व हजारों की संख्या में फर्राटा भरते रंग-बिरंगे वाहन इस सभ्यता के मुखर प्रतीक हैं। साल दर साल सड़कों पर वाहनों की संख्या में आशातीत वृद्धि हो रही है। ऐसा लगता है कि प्रत्येक नागरिक वाहनों की दौड़ में शामिल है। बहुतों के पास वाहन है और जिनके पास नहीं है, उनकी आंखों में इसके सपने पल रहे हैं। जो भी हो, राष्ट्रीयकृत बैंकों के सहयोग से लोग बड़ी संख्या में वाहन भी खरीद रहे हैं और चलने के लिए लाइसेंस भी प्राप्त करने में सफल हो रहे हैं। पर कदाचित बहुत कम ही वाहन चालक ऐसे होंगे जिन्हें ट्रैफिक नियमों का सम्यक ज्ञान होगा। परिणामस्वरूप, दिन-प्रतिदिन सड़क दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं और उनके परिवार बेसहारा हो रहे हैं। यदि हम टै्रफिक नियमों की गहराई में न भी जाएं, तो भी सामान्य बुद्धि एवं विवेक का प्रयोग करके न केवल दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है, वरन सड़क पर चलने वाले अन्य सामान्य नगारिकों को आये दिन होने वाली परेशानियों से भी छुटकारा मिल सकता है। उदाहरण के लिए, सड़क के किनारे स्थित दुकान के सामने पार्किंग की व्यवस्था लगभग नगण्य होती है पर वाहन चालकों द्वारा इस बात पर बिना ध्यान दिये अपने वाहनों को दुकान के सामने आड़े-तिरछे खड़े कर देना सामान्य बात है। कभी-कभी तो इसके कारण पहले से खड़े वाहन को इस अव्यवस्थित भीड़ से निकालना भी अच्छी-खासी समस्या बन जाती है और परिणामस्वरूप विवादों को भी जन्म देती है। इतना ही नहीं, ऐसा करने से सड़क पर चलने वाला सामान्य यातायात भी बाधिक होता है। सबसे बड़ी दिक्कत तो उन खरीदारों को होती है जो दुकान में प्रवेश करना चाहते है। यदि वाहन चालकों द्वारा दूसरों की परेशानी का थोड़ा सा भी ध्यान दे दिया जाए तो उपरोक्त समस्याओं का समाधान आसानी से हो सकता है।
ऐसी ही एक समस्या दोपहिया वाहन चालकों की है जो अक्सर तेज गति से अपने वाहनों को दौड़ाते हैं और कहीं पर, कभी भी अपने वाहन को मोड़ देते है। बिना समुचित संकेत दिये, इस प्रकार वाहनों को अचानक मोड़ना कितना खतरनाक है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है। अधिकांश मामलों में छोटी-मोटी या कभी-कभी घातक दुर्घटनाएं इसी खतरनाक प्रवृत्ति का परिणाम है। दुपहिया वाहनों के चालकों एवं वाहन पर पीछे बैठने वाले व्यक्तियों द्वारा नियमित रूप से हेल्मेट न पहनना भी बड़ी दुर्घटनाओं का कारण है। शायद यह हमारी आदत में शामिल हो गया है कि मात्र चेंकिंग के भय से ही हम हेल्मेट पहनते हैं और पीछे बैठने वाले व्यक्ति के लिए शायद अभी भी ऐसा करना जरूरी नहीं समझा जाता। पर अब समय आ गया है कि हम यह महसूस करें कि मानव जीवन की सुरक्षा के लिए दुपहिया वाहन पर बैठने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए हेल्मेट पहनना अनिवार्य है। ऐसा करना विधिक बाध्यता भी है।
दुपहिया वाहनों में एक प्रवृत्ति और देखने में मिलती है, वह है दो के स्थान पर तीन व्यक्तियों द्वारा एक समय में एक साथ वाहन पर बैठना। यह न केवल विधिक रूप में दंडनीय है, बल्कि सुरक्षा की दृष्टि से भी अत्यंत आत्मघाती कदम है। यह प्रवृत्ति मुख्यतः युवा वर्ग में परिलक्षित होती है। युवा वर्ग को भी यह समझना होगा कि एक अच्छे नागरिक बनने के लिए नियम एवं कानूनों का सम्यक पालन करना, भारतीय लोकतंत्र की नींव मजबूत करने की दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण है। अन्त में, एक बात की ओर ध्यानाकर्षण करना आवश्यक है। जिन चौरहों पर ट्रैफिक सिग्नल लगे हैं, वहां लालबत्ती होने पर वाहनों के रूकने के लिए सड़क पर सफेद रंग से धारियां बनायी गयी है जिन्हें ‘जेब्रा क्रासिंग कहते हैं। टै्रफिक नियमों के अनुसार लालबत्ती होने पर वाहनों को इसी क्रासिंग पर रोका जाना चाहिए। पर ऐसा होता नही है। वाहन चालक न जाने किस जल्दी में रहते हैं, यह तो वह ही जान सकते हैं। पर नियम न पालन करने के कारण चौराहों पर जो अव्यवस्था दिखायी पड़ती है और जिस प्रकार से अफरा-तफरी का माहौल रहता है, उसे किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। उच्च शिक्षा और अच्छे संस्कारों की परिणति हमारे जीवन की दैनिक गतिविधियों में दिखायी पड़नी चाहिए, अन्यथा भौतिक प्रगति की राह में अनेको प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। हमारी महान भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता इस बात की गवाह है कि हमने दृढ़ इच्छाशक्ति से आदर्श जीवनशैली को न केवल विकसित किया बल्कि पुष्पित एवं पल्लवित भी किया है। आज आवश्यकता है उन्हीं दृढ़ संकल्पों को जीने की और उन्हें मूर्त रूप प्रदान करने की। पर पहला कदम तो बढ़ाना ही होगा।
राकेश चन्द्रा
लखनऊ