
अशोक कुमार यादव
उदित होता ही रवि, मिट गया सब शोक। तीन जून को जन्मा, कर्म योगी अशोक।।
घर में था खुशी लहर, आनंद मंगल शोर। बरस पड़ी बरखारानी, नाच उठा मोर।।
गौर रूप नयन नील, दशन वर्ण नग हीर। चंचल कपोल अधर, नाम लिया रघुवीर।।
सदन ऊर्वी विलोक, लाल लाड़िले सपूत। चंदन वदन मुस्काय, स्नेहमयी कुसुम रूत।।
पलना झूला रैन-बासर, अमृत दिया माई। पिता का प्यारा संतान, जग जाहिर मैं होई।।
लरकाई में बालसखा, खेलन आये सब खेल। इठलाती सुन्दर बाला, ताल सरिखी होत मेल।।
शारदा का बालपन से, था अमिट वरदान। गुरूकुल में विद्याधर ने, दिया सफल ज्ञान।।
संघर्ष जीवन रेख था, मिला न सहज मुकाम। कर्म धागा बुनता गया, पहूँचा सकल जगधाम।।
युवाकाल महा जंजाल, नीति -अनीति न जाने। एक प्रेम की पीर मिले, धर्म राह भटके दीवाने।।
जीवन सुखसागर है, सर्वो कृपा गिरिधारी। सत्य राह चलूं सदा, बनके तेरा पग पूजारी।।
कवि- अशोक कुमार यादव
पता- मुंगेली, छत्तीसगढ़ (भारत)
पद- सहायक शिक्षक
पुरस्कार- मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण ‘शिक्षादूत’ पुरस्कार 2020
प्रकाशित पुस्तक- ‘युगानुयुग’