साहित्य
आना न राखी बंधवानेे

कवि मनोहर सिंह चौहान मधुकर
भैया राखी पर आ जाना,नहीं आ पाऊगी इस बार।।
सास मेरी कमजोर है भैया, ओर ससुर जी बीमार।।
नन्द मेरी छेल छबीली, भेजे पहले ही समाचार।
राखी पर मैं आ रही हूं, भाभी मत जाना पीहर धार।।
किसके भरोसे मै घर छोडू, दूर है ड्यूटी गंगधार।
आने का तो मन बहुत हैं,पर तू आजा करती मनवार।।
सोच रही हूं करोना चलते,मन आता एक यही विचार।
आना न राखी बंधवाने, मनाएंगे फिर कभी त्योहार।।