__सुधीर श्रीवास्तव

नवंबर ‘२० में (दिनांक तो याद नहीं) में रात्रि ७.३० बजे के आसपास एक फोन आया।
क्या मेरी बात सुधीर श्रीवास्तव जी से हो रही है।
मैंने हां में जवाब दिया।
उधर से उन्होंने मुझे अपना परिचय जैन(संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु की हिंदी विभागाध्यक्ष राखी के. शाह के रूप में दिया।
सामान्य औपचारिक बातों के बाद उन्होंने मुझसे अपने बच्चों के लिए समय मांगा, तो मेरी समझ में आया कि शायद अपने बच्चों के लिए बोला रही है। तो मैंने उन्हें आश्वासन किया कि वो जब चाहें फोन पर बच्चों से बात करा सकती हैं।
लेकिन जब उन्होंने विश्वविद्यालय के बच्चों की बात की तो मेरे हाथ पैर फूल गए और मैंने बिना किसी लागलपेट के साफ कर दिया कि मैं ऐसे प्रोग्राम करने के योग्य खुद को नहीं पाता। क्योंकि मैं ऐसा न तो कुछ लिख पाता हूं, न ही मेरे पास कोई अनुभव है। वैसे भी मैंने कभी बेवनार किया भी नहीं था।
कारण भी बता दिया कि पिछले बीस बाइस सालों से साहित्यिक गतिविधियों से दूर रहा। २५मई ‘२० में पक्षाघात के शिकार और इलाज के बाद पुनः प्रयास करने लगा हूं।
(बताता चलूं कि विद्यार्थी जीवन में लेखन के दौरान तीन चार मंचों पर जाने का मौका मिला था, पक्षाघात के बाद उस समय तक बमुश्किल ५-६ आनलाइन आयोजनों का ही हिस्सा बना था)
उन्होंने मुझसे कहा भाई साहब मैं आपको पढ़ती रहती हूं। आपके लेखन से प्रोत्साहित होकर ही मैंने आपको फोन किया है। फिलहाल मुझे आपकी स्वीकृत चाहिए।
मैंने पीछा छुड़ाने की गर्ज से उनसे दो चार दिन का समय ले लिया।
शायद तीन बाद उनका फोन आया, मैं असमंजस में था कि मैं क्या जवाब दूं। यह सोचकर मैंने ब्रहास्त्र का प्रयोग किया कि देखिए अगर मैं हां भी कर दूं तो बहुत संभव है कि कार्यक्रम अच्छा नहीं हो और आपके सम्मान को ठेस पहुंचे। यह मैं कभी नहीं चाहता।
फिर उन्होंने मुझे समझाया कि आप कर सकते हैं और आपको ही करना है। आपकी साफगोई मुझे पसंद आई। आप एक बार हौसला कीजिए। जब मुझे भरोसा है तब आप खुद पर विश्वास तो कीजिए। बस! कुछ मत सोचिए केवल हां बोलिए। ये सोचकर खुद को तैयार कीजिए कि अपनी छोटी बहन की जिद पूरी करने के लिए आपको करना है। बेवनार अच्छा होगा ये मेरा विश्वास है।
मेरी समझ में यह नहीं आ रहा था कि आखिर एक अन्जान से शख्स को प्रेरित करने के पीछे कौन सी शक्ति है, तब लगता रहा कि शायद यही है ईश्वरीय शक्ति। जो कुछ भी कर सकती है।
अब हां करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। मैंने हां के साथ उन्हें आश्वस्त किया कि हर संभव प्रयास करुंगा कि आपको शर्मिन्दा न होने पड़े।
राखी ने मुझसे कहा-बेकार कि चिंता छोड़कर तैयारी कीजिए। मेरा स्नेह आपके साथ है।
अब तो मुझे ऐसा लग रहा था उक्त बेवनार महज बेवनार नहीं बल्कि छोटी बहन का विश्वास है। जिसे मुझे हर हाल मे अच्छे से ही करना है।
और अंततः ४ दिसंबर’२०२० को ४० मिनट का वो बेवनार मेरी आशंकाओं को धता बताते हुए शानदार ढंग से संपन्न हो गया।
उसके बाद कई लोगों के फोन पर बधाई संदेश मिले, मगर मैं तो छोटी बहन की स्वीकार्यता चाहता था। जब राखी ने फोन कर खुशी व्यक्त की तो मुझे लगा कि मेरे सिर से बोझ हट गया हो। क्योंकि इसका सारा श्रेय उस छोटी बहन को जाता है जिससे मैं आज भी नहीं मिला हूं।
मुझे आज भी यह कहने में कोई संकोच नहीं कि उस बेवनार के बाद मेरा आत्मविश्वास सातवें आसमान पर जा पहुंचा। शायद छोटी के स्नेह का विश्वास जो रहा।
आज भी राखी से मुझे छोटी बहन का स्नेह मिल रहा है। उससे बड़े भाई जैसा सम्मान पाते हुए मैं उसके विश्वास और स्नेह को नमन करने के साथ साथ उसके उज्जवल भविष्य की प्रार्थना करता हूं।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश