
__आशोक दोशी
भाई जीवन है तो उलझने तो होगी ही
सुलझाने वाला
शख्स चाहिए !!
जीवन को समझने और देखने
का सकारात्मक
अक्स चाहिए!!
नियोजीत निर्धारित
कोई लक्ष चाहिए
सक्षम सशक्त मशक्कत करे वैसा
मन मष्तिष्क
शिक्षीत दिक्षित थोड़ा
दक्ष चाहिए !!
हिम्मत से काम ले ऐसा
वक्ष चाहिए!!
सुलझा संवरा तार्किक
प्रतिपक्ष भी
तो चाहिए!!
तभी तो दूर होगी उलझने
कोई सहकार अपरोक्ष या परोक्ष
प्रत्यक्ष चाहिए !
स्वरचित :आशोक दोशी
सिकंदराबाद