रूह का हिस्सा अपनी जिस्म का किस्सा वो सुनाती रही बार- बार
ए दरिंदे तू रुक जा चीख- चीख कर बताती है
उसकी खामोशियों का एतबार कर डाला
तूने ए दरिंदे जीते जी उसे मार डाला
चीख ती रह गई वो उन आशुओ की गागर में
तूने उसे सुला डाला उस दलदल भय सागर में
रूह का हिस्सा अपनी जिस्म का किस्सा वो सुनाती रही बार- बार
नादान थी तेरा लेके क्या बैठी थी
किसी बाप की वो प्यारी इकलौती बेटी थी
रूह की आवाज सुनेगा उसके ईश्वर जब
तू ठोर और ठिकाना भूलेगा तब
सिसक सिसक कर मर गई बिचारी
अब तो उठो मेरे भारत के लाचारी
सोते रहोगे रात दिन तो बेटियां तुम्हारी जाएंगी कहा
वह दरिंदे तो शोक पूरे करेंगे वहा
उठो पुकार सुनो एक बच्ची की
अपने देश की बेटी को अपनी बेटी समझे
एक बेटी की पुकार
रूह का हिस्सा अपनी जिस्म का किस्सा वो सुनाती रही बार- बार !
- प्रिया चतुर्वेदी
