_पदमा दीवान “अर्चना
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चंद्र की चंचल किरणें होती,
इठलाती बलखाती लहरें होती,
विभावरी मे खिलखिलाती तुम,
संगमरमरी देह समेटे होती।
शर्वरी मेरी प्रेयसी तुम संग,
नौका विहार आनंदमय होता,
यामिनी की मधुरम बेला मे,
प्रेम भरा आलिंगन होता।
सोचूं तुमको हरपल हरक्षण,
विचलित हिय मन होता है,
जग के सारे झाल झपेटे से,
विरक्त मन को सुख संबल वो देता है।
भरता तुमको आलिंगन में,
लट तेरे मै सुलझाता भी,
कि बिखरी बिखरी कजरा सिंदूर,
ऑचल तेरा सम्हालता भी।
ओ शर्वरी मेरी अर्धांगनी,
गोरी कुंतल तेरे लहराते से,
इंदर्नील तेरी माथे की बिंदीया,
मुझको मोहपाश मे बाँधे से।
कहाँ तुम्हें है चैन प्रिया मेरी,
दुनिया के कठिन झमेलो से,
मेरा मनवा व्याकुल होता है बस,
संग नौका विहार मे जाने को,
ओ प्रिया मेरी शर्वरी मेरी अर्धांगनी।।
पदमा दीवान “अर्चना
रायपुर,छत्तीसगढ़