
__के एल महोबिया
यत्र नार्यास्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता करना एक दिखावा है
कन्या भ्रूणों की करते हत्या कन्या पूजा एक छलावा है।
कन्या भ्रूण को जीने का अधिकार नहीं है क्या जग में
धरती पर आने से पहले मार दिया फिर रहती बंधन में।
धरती पे छिन्न-भिन्न किते नवजात शव इर्द-गिर्द मिलते
मानव जीवन से एक ऐसी नफरत जो जीवन को तरसे
अगर घृणित नर जीवन फिर तुम क्यों जिंदा फिर कैसे
बलात्कार के अड्डा है मंदिर मस्जिद की पूजा धंधा जैसे
घर बाहर आंगन में और सुरक्षित रही नहीं आज बेटियां
किस मुख से पूजन कर पत्थर पूजन बनी आज रोटियां
कन्या पूजन की सार्थकता क्या मारी मारी बेटी फिरती
मन के अंदर रावण महिष बैठा बेटी आंखों कैसे चुभती
काली दुर्गा चंडी माता बेटी पत्नी ना सुरक्षित घर वन में
कैसी विकृति आ बैठी भेदभाव करें जीवन के उपवन में
मानव जीवन धारण कर आज क्यों नर पिशाच बन बैठे
कामुक हो नहीं नियंत्रण पाप कर्म कर बेटियां मिटा बैठे।
बेटी काली दुर्गा की पूजा फिर इसकी सार्थकता जाने।
जीवन अधिकार कन्या क्यों मासूम जुल्म सहे अनजाने।
लेखन
के एल महोबिया
अमरकंटक अनूपपुर मध्यप्रदेश