
__शेख रहमत अली बस्तवी
बड़ा मुश्किल भरा ज़िंदगी का सफ़र रहा मेरा।
पर फ़िर भी न टूटने वाला दीवार हूँ मैं।।
वो गुज़रे हुए लम्हों की यादें नकश् है सीने में।
पी जाऊँ सारी दुनिया के दर्द ऐसा संसार हूँ मैं।।
हर रंग हर ढंग हर तरह से गुलज़ार हूँ मैं।
लिखने को दास्ताँ हर शय “रहमत” तयार हूँ मैं।।
क़लम की सुर्ख श्याही से निकलते शब्द के मोती।
ता-उम्र न रुकने वाला “क़लम” की धार हूँ मैं।।
दर्द को पिरो कर एक आकृति देने वाला।
बस्ती के एक छोटे से गाँव का क़लमकार हूँ मैं।।
शेख रहमत अली बस्तवी
बस्ती उ, प्र, (भारत)