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__सुषमा दीक्षित शुक्ला
इन किताबों की शख्सियत ,
तो देख लो ज़नाब ।
बस खमोशियाँ वजूद में,
पर ज़ेहन में है इंक़लाब।
ना बोलकर भी बोल देतीं,
हर सवालों के ज़बाब ।
क्या सही है क्या ग़लत है ,
दामन में हैं सारे हिसाब ।
ये सिखाती हैं बहुत कुछ ,
पुन्य क्या है क्या अज़ाब ।
ज्ञान की गंगा इन्ही में ,
सबक भी हैं बेहिसाब।
इश्क़ कर लो यार इनसे ,
फिर बनोगे कामयाब ।
इन किताबों की शख्शियत ,
तो देख लो ज़नाब ।
बस ख्मोशियाँ वजूद में ,
पर ज़ेहन में है इंक़लाब ।
इनकी शोहबत से मिलेगा ,
नूर , जैसे आफ़ताब ।
दोस्त इनको तुम बनालो ,
हो न पाओगे ख़राब ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला