साहित्य
किस मोंड़ से चले थे

किस मोंड़ से चले थे
किस मोड़ से चले थे
ये कहाँ ले आये
न जाने ये नसीब
किस मोड़ ले के जाये
गम की बदली को
हटा प्यारभरी बारिश में
वो हमें भिगा जाएं
भोर की हर पहली किरण
उनके दामन में समा जाए
कुछ ऐसे समा कुछ
ऐसे ठहर जाएं
जिंदगी की असीम शांति
जी भर के जी जाएं
कुछ इस तरह बाकी
उनमें हम रह जाएं
तन्हाइयों में वे हमे
महसूस कर
मुस्कुराते ही जाऐं
उस मुस्कान की पहेली
कोई बूझ ही न पाए
कोई जान ही न पाए…
शिल्पी सिंह