जिंदगी से कुछ पल अपने लिए मांगा
तो उधार की सांसे देकर चली गई
सूरज की चाहत में खुद जलते रहे
वो स्याह रात देकर चली गई
हर कश्ती का मुहआफिज हो
जरूरी भी नहीं तूफ़ाँ मे साथ छोड़ वो
कश्ती मझधार मे डाल चली गई
उम्मीद पे नाउम्मीदों की ही जीत हुई
हर बाज़ी मे वो हमे जिंदगी से
मात करती चली गई
तकदीर का फैसला भी
मेरे साथ रहा कातिलाना
जिसके धार पे चलके
सारी ख्वाहिशें मेरी कटती चली गई। ।
- प्रतिभा श्रीवास्तव
राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)
