कैलाश चंद साहू की कलम से

दुनिया की भीड़ में खो गई गजल
तुमसे नहीं खपा यार मेरी गजल
दुनिया की भीड़ में खो गई गजल।।
आंखो में आंसुओ की धार गजल
मुहब्बत में सनम गुलजार है गजल।।
बिखर गया ईमान फिर क्यूं इंसा
रोते हुए इंसा को हंसाती है गजल।।
आंखो में नहीं तुम्हारे दर्दे नश्तर यार
फिर क्यूं तड़फाती ये सुहानी गजल।।
जागकर देखे ख्वाब सुनहरे हमने
भीनी भीनी खुशबू जैसी है गजल।।
बिछुड़ है सनम मुहब्बत हमारी पर
भुला नहीं पाए उसको वो गजल।।
हर मुलाकात इक बहाना होता है
हर वक्त गुनगुनाते तुम्हारी गजल।।
सफलता के राज छुपाते तुमसे सनम
आज हर मोड़ पर दर्दे दिल है गजल।।
दिल में होते गहरे घाव लिखते सब
सभी के दिल से निकलती है गजल।।
नहीं डिगा है मेरा होंसला
संकट हो या हो तूफानों की आहट
नहीं डिगेगा नहीं डिगा है मेरा होंसला
तूफानों और आंधियों की क्या बिसात
मरकर भी जिंदा रहेंगे हम खिलाफत।।
ज्वालामुखी हो या बाढ़ का वीरान मंजर
घोंप देंगे तिरो नजर उड़ते उड़ते होंसले से
इम्तिहान जिंदगी देती आई है तूफानों से
होंसला बुलन्द था रहेगा नहीं किसी से।।
संघर्ष अनमोल विरासत स्वाभिमान से
पर्वत हो विशाल गरमी सर्दी की मिसाल
जल जला आए जीवन में उतार चढाव
हौसला नहीं तोड़ पाएगा हमारा विशाल।।
जब तलक इंसा में होंसला नहीं होगा
कोई भी जिंदगी में बदला नहीं होगा
दुर्गम पथ हो कंकरीला जलजला फिर
लेकर लिखेंगे दुर्गम पथ मुश्किल घोंसला।।
कभी ना झुके है ना रुकेंगे मुकाबला होगा
हौसला से बढ़ेगी जीवन की अदम्य वास्ता
साहस अदम्य उत्साह मौत से होगा सामना
जान गए जाग गए हम जंग जिएंगे होंसला।।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित
कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान