
__पिंकी सिंघल
एक खालीपन सा आ गया है
इस जीवन में मेरे
यूं दूर बहुत दूर
तुम्हारे जाने के बाद
कैसे बताऊं तुम्हें कि
हर छोटी बड़ी बात पर
तुम्हारी बहुत याद आती है
जब भी सोचूं मैं तुमको
ये आँखें भर भर आती हैं
बहुत ही बेबस और अकेला
महसूस कर रही हूं ख़ुद को
किंतु मेरे इस खालीपन में भी
कतरा कतरा बस
तुम ही शामिल हो
क्यों याद आते हो इतना
क्यों तड़पाते हो मुझे इतना
क्या मुहब्बत करने का सिला
दिल जलाकर दिया जाता है
क्या उल्फत में पड़ने का मज़ा
इस तरह सजा देकर लिया जाता है
खून के आंसू विरह में तुम्हारे
मैं पी रही हूं पल पल
तुम क्या जानो बिन तुम्हारे
मैं कैसे जी रही हूं हर क्षण
ऐसे भी भला कभी कोई
बिन बताए छोड़ कर जाता है
मुझ बिन तुम्हारा भी
न जाने होगा कैसा हाल
यह सोचकर दिल मेरा
दिन रैन बैठा जाता है
भावों को शब्दाकार निसंदेह
मेरी अंगुलियां दे रही हैं
लेकिन,
तुम को न पाकर पास
यकीं मानों,इस वक्त
मेरी धड़कनें रो रही हैं
और
बेहिसाब रो रही हैं।
पिंकी सिंघल
अध्यापिका
शालीमार बाग दिल्ली