
__मधु शंखधर ‘स्वतंत्र’
खुशबू अपने पन की ऐसी , जीवन मधुमय वह कर जाए ।
भाँति – भाँति के पुष्प समाहित , खुशबू हिय को बहुत लुभाए ।।
आज मिली पाती प्रियतम की , जिसमें पिय संदेशा आया ।
एक पुष्प था सूखा उसमें , जो अंतर्मन आन समाया।
दूर देश में बैठा साथी , खुशबू शाश्वत मिलन कराए ।
खुशबू अपने पन की ऐसी…..।।
सीमा पर बैठा जो प्रहरी , माटी को वह तन पर धारे ।
अपने मिट्टी की खुशबू से , नव ऊर्जा से राष्ट्र सँवारें ।।
देह त्याग कर भाव समर्पण , खुशबू से खुशबू मिलवाए।
खुशबू अपनेपन की ऐसी……।।
खुशबू पूर्वज की जिस गृह में , उस गृह में उन्नति है आती।
मात – पिता आशीष साथ ही , अमृत सरस वर्षा करवाती ।
बंधन रिश्तों का पलाश सम , स्वर्णिम खुशबू जो फैलाए।
खुशबू अपने पन की ऐसी…..।।
खुशबू धरती और गगन की , प्रकृति सुशोभित गाथा गाती।
हिन्द देश की खुशबू मिलकर , सत्यमेव जयते बन जाती ।
जन- गण – मन फूलों की माला , भारत माँ शृंगार कराए।
खुशबू अपनेपन की ऐसी…..।।
मधु शंखधर ‘स्वतंत्र’
प्रयागराज