
__(प्रवेंद्र पण्डित)
रमन मायूस मन लिए पैदल ही कारखाने से घर की तरफ निकल पड़ा। मन में विचारों का मंथन चल रहा था। आखिर पाँच हजार तनख्वाह में कैसे घर चलेगा, पत्नी और एक साल की मासूम बच्ची, राशन पर खर्च करने के बाद जोड़ने के लिए एक रुपया भी बचाना मुश्किल है।
आधे रास्ते में उसे हलकू बेलदार का डेरा दिखाई दिया। एक नीम के पेड़ तले तिरपाल बनाकर रहता था। इस वक्त वह अपने डेरे पर ही था, उसकी पत्नी रामवती अपने बच्चे को गोद में लिटाकर ईंटो के चूल्हे पर मोटी मोटी रोटी बना रहती थी। हलकू हँस कर कुछ कह रहा था और रामवती उसकी बातों को सुनकर बार बार ठहाके लगा रही थी। रमन उन्हें इतना खुश देखकर सोचने लगा कि यह सौ रुपए रोज कमाने वाला इतना खुश कैसे रह सकता है। जिज्ञासा वश रमन के कदम हलकू के तम्बू के सामने ठहर गए, और पूछा हलकू भाई आज किस बात पर इतने खुश हो। हलकू रमन को देखकर बोला नमस्कार बाबूजी आइए । कहकर एक लकड़ी का पट्टा रमन की तरफ अदब से बढ़ा दिया। रमन ने बैठते हुए अपना खुशी के कारण वाला सवाल फिर से दोहराया, तो हलकू मुस्कुराते हुए बोला बाबूजी खुशी किसी कारण की मोहताज थोड़े है यह तो सदैव अपने दिल में रहती है भगवान ने खुश रहने के लिए ही तो जन्म दिया है । रमन आश्चर्य चकित होकर बोला लेकिन तुम सौ रुपए कमाते हो फिर भी खुश हो? क्या तुम्हे अपने भविष्य की चिन्ता नहीं है। हलकू मुस्कुराते हुए बोला बाबू चिंता करने से तो काम में मन नहीं लगेगा, काम कम होगा तो मजदूरी भी घटेगी, इसीलिए जिस दिन ज्यादा मिलता है अच्छा खालो, और कम मजदूरी मिले तो आने वाले अच्छे दिन का खुशी से इंतजार करो। मेहनत से ईश्वर खुश होता है और आपकी हर मुश्किल को आसान कर देता है। इसलिए जब तक जीना है मस्ती से जिओ।
रमन ने हलकू की बातों को गौर से सुना और बिना कोई प्रश्न किए चिंता भूलकर मुस्कुराते हुए उठकर चल पड़ा अपने घर की दिशा में।
(प्रवेंद्र पण्डित)
अलवर राजस्थान