साहित्य
गर्मी
रमा बहेड
दौलत की गर्मी
शोहरत की गर्मी
कला की गर्मी
कुर्सी की गर्मी
पाकर नर समझे खुद को खुशहाल
मौसम की गर्मी से हाल हुआ बेहाल
कुर्सी की गर्मी के बल पर
दौलत की गर्मी पाने
किया प्रकृति से खिलवाड़
अब गर्मी ने तोड़े सारे रिकॉर्ड
पंछी गण होकर बेकल
ढूंढ रहे धरती पर जल
सूखे सारे ताल तलैया
वन उपवन मुरझाए
जीव जंतु सभी अकुलाए
सूरज लगा आग उगलने
बर्फ की चादर लगी पिघलने
भट्टी जैसे धरती तपती
कर दो कृपा अब शचीपति।
रमा बहेड हैदराबाद