
__पल्लवी माथुर
मां! तुमसे कितनी बार कहा है कि मुझे सब्जी छोटी नहीं बड़ी कटोरी में दिया करो? और यह कैसी सब्जी बनाई है तुमने? ना नमक है, ना मसाला! तुम्हें पता है ना कि मैं टिंडे नहीं खाताl फिर क्यों बनाए? मेरी तो परवाह ही नहीं है किसी को इस घर में, कहकर राजू मुंह बिगाड़ कर खाना खाने लगाl
राजेश्वरी जी के लिए यह शब्द नए नहीं थे, पर वो करे भी क्या? बेटे का मोह और घर की परिस्थितियां उन्हें कुछ बोलने की इजाजत नहीं देते थेl हां! सुनने की कला में अब वह निपुण हो गई थीl वह बेटे को खुश करने का हर संभव प्रयास करती, पर बेटा था कि बस उनकी गलतियांं देखता, ना कि उनकी कोशिशें!
खैर! वक्त ने अपना फेर बदलाl एक लंबी बीमारी के बाद राजेश्वरी जी चल बसीl राजू ने भी शादी कर एक नई जिंदगी की शुरुआत कीl खाने के शौकीन राजू को जब यह पता चला कि पत्नी को खाना बनाना नहीं आता, तो उसे बेहद दुख हुआ और मां की याद भी आई पर पत्नी के मोह में उसने खाना बनाने की जिम्मेदारी स्वयं पर ले लीl
अब राजू सुबह ऑफिस जाने से पहले और शाम को ऑफिस से आ कर बेहद मन से खाना बनाता, पर पत्नी को उसकी बनाई हर चीज में कोई ना कोई नुस्ख मिल ही जाताl राजू को मां के साथ किए अपने बुरे बर्ताव पर अब अफसोस होने लगा थाl अब वो ज्यादा से ज्यादा ध्यान लोगों की कोशिशें देखने में लगाता था, ना की गलतियां!
पल्लवी माथुर