
कवि सुरेंद्र कुमार जोशी
चूहे ने बिल्ली से पूछा
मौसी क्या कर रही हो
इधर उधर क्या ढूंढ रही हो
बिल्ली मौसी पहले
मन ही मन मुस्कुराई
चूहे को देखकर गुदगुदाई
कहने लगी चूहा
आज नहीं है तेरी खैर
मौसी कहते मुझे तू देख
जी ले जिंदगी की 4 मिनट
5 मिनट में हो जाएगा पेट के अंदर
दूर से तमाशा देख रहा था बंदर
बनकर थानेदार पहुंच गया था बंदर
बंदर पर था वारंट गिरफ्तारी का
कोर्ट पुलिस ढूंढे बंदर को
बंदर बैठा घर के अंदर
बकरा लेकर आया तामील
ढूंढे घर के अंदर बंदर
शेर था वकील बंदर का
उस घर की करे वह चाकरी
कैसे बकरा तमिल पहुंचाएं
शेर के वह निकट आए
बंदर को सजा दिलवाये
पता नहीं जान किसकी जाए
और फैसला किसके हक में आयेगा
आगे चूहा पीछे बिल्ली
पीछे पीछे बंदर
सारे मिलकर खेले कबड्डी
घर के अंदर
पहुंच गया तमिल लेकर
बकरा घर के अंदर
स्वयं को जज समझकर
शेर फैसला करता घर के अंदर
यही परिस्थिति चल रही
घर परिवार समाज के अंदर
एक दूसरे की पूंछ खींचने लगे हैं
बाहर और घर के अंदर
हास्य कविता
कवि सुरेंद्र कुमार जोशी
देवास मध्य प्रदेश