
__अशोक कुमार यादव
कलित मोहिनी जंगल जलेबी,
तेरी ओर खिंचा चला जाता हूं।
देख तुम्हारे लाल-लाल बदन,
पाने को हर पल ललचाता हूं।।
तुम हो एक नौजवान लड़की,
यौवन से सुसज्जित नव सुंदरी।
लगती हो तुम फलों की देवी,
अंग-अंग में धारण की हो मुंदरी।।
हवाएं झूला रहा है तुझे झूला,
बैठी हो डालियों की पालना में।
कृश कमर को मटका रही हो,
गीत गा रही हो कांत कामना में।।
नजरें मिलते ही मैं आकृष्ट हुआ,
तुम मेरी भूख, प्यास, कामना हो।
प्रीति में सिरफिरा पागल बना हूं,
जीवन पथ में चलने की प्रेरणा हो।।
हासिल करने लिए संघर्ष करूंगा,
नुकीले कांटों पर मुझे चलना होगा।
हो जाऊंगा मैं लहूलुहान तर-बतर,
अंतिम सांस तक आगे बढ़ना होगा।।
कवि- अशोक कुमार यादव
पता- मुंगेली, छत्तीसगढ़ (भारत)
पद- सहायक शिक्षक