
__डॉ रमेश कटारिया पारस
दिल से दिल जब आ मिला है दोस्तो
काहे का फ़िर फ़ासला है दोस्तो
मैं बड़े आराम से था कल तलक
हरसू गमों का सिलसिला है दोस्तो
हर तरफ़ वीरानियाँ थी आज तक
फ़ूल इक दिल में खिला है दोस्तो
कौन जी पाया है इक पल चैन से
जिन्दगी इक कर्बला है दोस्तो
यूँ लगा कि मिल गई मन्जिल मुझे
मुद्दतों का फाँसला है दोस्तो
रस्मों की प्राचीर में ये क़ैद है
आदमी है या किला है दोस्तो
आज़ तक मन्जिल पे जो पहुँचा नहीं
जानें कैसा काफ़िला है दोस्तो
मुझको काँटे फ़ूल सारे दुश्मनों को
जिन्दगी से ये गिला है दोस्तो
आठ दस बच्चों की घर में फ़ौज है
बीवी फ़िर से हामिला है दोस्तो
आज तुम हो कल कोई और आयेगा
ये मुसलसल सिलसिला है दोस्तो
प्यार के बदले मुहब्बत पाओगे
नफ़रतों से क्या मिला है दोस्तो
डॉ रमेश कटारिया पारस