
सुषमा श्रीवास्तवा
किताब औ जीवन का हो गया गठबंधन,
दिलो-दिमाग का हुआ उस संग संगम।
ज़िन्दगी एक ख़्वाब नहीं हकीक़त है,
वह तो स्वयं एक अद्भुत किताब है।
यहाँ हर दिन एक पन्ना बनकर जुड़ जाता है,
नवपृष्ठ को मुकाम बनाने का रास्ता दे जाता है।
किताबों संग दोस्ती ही तो जीवन की असली समझाइश है,
जिनका स्वाध्याय ही तो मस्तिष्क की फरमाइश है।
किताबों की दुनिया है बड़ी अलबेली,
इनसे सुलझती है जीवन की पहेली।
किताबों से सर्वोत्तम न कोई है मित्र,
मेरा दिलबर है किताब ही परम मित्र।
किसी ज्ञानी ने सही तो कहा है,
यह जीवन तो खुली किताब है।
रचयिता – सुषमा श्रीवास्तव, रुद्रपुर, उत्तराखंड।
मौलिक रचना
(सद्यः निःसृत)
26/04/2022