साहित्य
जिज्ञासा

प्रीति चौधरी”मनोरमा”
जिज्ञासा उर पल रही, मिले ईश का दर्श।
सुमिरन करती नित्य ही, देखूँ उर का अर्श।।
देखूँ उर का अर्श, दिखे ना कुछ भी आगे।
मेरे अंतर आज, मिलन की इच्छा जागे।।
कहती निशिदिन प्रीति,नाथ का कण-कण वासा
मिले परम प्रभु धाम,यही है मन जिज्ञासा।।
प्रीति चौधरी”मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।