
__अलका गुप्ता ‘प्रियदर्शिनी’
पुस्तक है जीवन का सार ,
ज्ञान का इसमें भरा भंडार।
पुस्तक सा दूजा नहीं यार,
सब से करें बराबर प्यार।
जैसे पढ़ने को विद्यालय ,
पुस्तक रखने को पुस्तकालय ।
इक ढिंग मिल जाती है पुस्तकें, इधर-उधर नहीं भटके बाल।
कक्षा की शुरुआत हुई हो,
या हो कालेज का दिन अंत।
पुस्तक देती साथ हमेशा,
जीवन भर जीवन पर्यंत।
शिक्षा को परिभाषित करना, पुस्तक और ग्रंथों का काम ।
आदर्श नए नित स्थापित करना, पुस्तक बिन सब है ना काम।
सौ मित्रों से बढ़कर एक है, पुस्तक जैसा ये दोस्त महान ।
अपने मन के भाव उतारो, अनजाने अनवी की बयान।
ज्ञान बांटती जब भी जिसमें, निष्पक्ष कर रही देखो दान।
‘अलका’ के जीवन में पुस्तक जैसा,
दूजा कोई नहीं हो सके महान।
पुस्तकें है मुझको दिल से प्यारी, इनसे मेरे जीवन का नाता ।
सुबह शाम हो कोई भी पहर, पुस्तक विनय मुझे कुछ नहीं भाता।
अलका गुप्ता ‘प्रियदर्शिनी’ लखनऊ उत्तर प्रदेश।