साहित्य
जीवन की आपाधापी में

प्रीति चौधरी”मनोरमा”
होठों की चिर-परिचित मुस्कान खो गयी
जिम्मेदारियों के बोझ तले ज़िन्दगी सो गई
हर खुशी हमसे जैसे अब दूर हो गई
भागदौड़ भरे इस जीवन की आपाधापी में।
ज़िन्दगी नीरव और सुनसान हो गयी,
बचपन की मासूम सी पहचान खो गयी,
हृदय की दुनिया कितनी वीरान हो गयी
भागदौड़ भरे इस जीवन की आपाधापी में।
साँसें हमारी दूभर और हलकान हो गयी
ग़मज़दा धडकनें मायूसी की दुकान हो गयी
सिसकियों में सजा साज-ओ-सामान हो गयी
भागदौड़ भरे इस जीवन की आपाधापी में…
प्रीति चौधरी”मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।