साहित्य
तड़प

आरती झा
खट्टी-मीठी करके प्यार की बरसात,
बंद कर लिये तूने दरवाजे अकस्मात।
बेहतर था जो हम अपरिचित होते,
ना होता कभी अश्कों से मुलाकात।
बेचैनियों की तड़प लिए दिन आई है,
लगे जैसे होने लगी जीवन की रात।
शामो सहर तुझमें ही खोया मन रहा,
मालूम ना था मिलेगी ऐसी सौगात।
गुफ़्तगू करता मन हमेशा ये कहता,
प्रेम की नहीं चाहिए अब ऐसी खैरात।
गिला नहीं कोई तुझसे ऐ मेरी जिंदगी,
समझनी होगी तुझे अब तो हर बात।
दिल को तड़पा, यूँ मायूस ना कर,
समझ इसे,है ये जीवन की शुरूआत।
आरती झा(स्वरचित व मौलिक)
दिल्ली
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