__अनुराधा प्रियदर्शिनी

तुमसे मेरा रिश्ता ऐसा लगता है
जैसे जन्मों से पुराना नाता है
अब क्या-क्या बतलाऊँ तुमको
मुझसे ज्यादा तुमको मालूम है
मेरे दिल की धड़कन तुमसे है
हर इक साँस में नाम तुम्हारा है
कुछ भी सोचूँ उससे पहले ही
तुमने हरदम मुझको समझा है
जब भी सूरज भोर में निकले है
साँझ की बेला जब-जब आती है
हर पल हर घड़ी तुम ही संग में
गीत सरगम के होंठों पर आते हैं
अपने गुलशन में जब भी मैं देखूँ
हर एक सुमन में तुम ही दिखते हो
यहाँ प्रेम की खुशबू ऐसी फैली है
जीवन सहज सरल धारा बहती है
स्वरचित एवं मौलिक रचना
अनुराधा प्रियदर्शिनी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश