
__अलका गुप्ता ‘प्रियदर्शिनी’
थोड़ा सा प्यार करूं, थोड़ा तकरार करुं।
प्यार जीवन में बढे, ऐसा संचार करूं।
नैनों से भाव जगे जो उसी से प्रीत के अनुबंध करूं
अनकह अनसुनी सी प्रीत से कुछ संधि करूं।
लब्ज खामोश ही रह जाए और मैं प्यार करूं।
प्यार जीवन में बढ़े ऐसा संचार करूं।
थोड़ा सा प्यार करूं थोड़ा तकरार करूं
लफ्जे खामोशी से लिखी जाती प्यार की भाषा,
मूक दर्शन में ही जुड़ जाती दिलों की आशा।
फूलों सी फितरत में खुशबू बनके सुमन में रहूं।
प्यार जीवन में बढे ऐसा संचार करूं।
थोड़ा सा प्यार करूं, थोड़ा तकरार करूं।
तू है आकाश नीला, मैं तो धरा पर ही रहूं।
मिलन की चाहत में अलंकृत हो रस छंद लिखूं।
सजू मैं कांटो बीच फिर भी सुगंधित गुलाब बनूं।
प्यार जीवन में बढ़े, ऐसा संचार करूं।
थोड़ा सा प्यार करूं थोड़ा तकरार करुं।
प्यार में होती जब तकरार तो गहनता बढ़ती,
दिल तड़पता है याद प्यार की परवान चढ़ती।
चाहे ‘अलका’ प्यार वृद्धि को तकरार करूं।
प्यार जीवन में बढ़े, ऐसा संचार करूं।
थोड़ा सा प्यार करूं, थोड़ा तकरार करूं।
अलका गुप्ता ‘प्रियदर्शिनी’
लखनऊ उत्तर प्रदेश।