देवी गीत

मणि बेन द्विवेदी
जय माॅं जय मां शेरा वाली की बोलो जयकार।
उतर पहाड़ों से आईं माॅं महिमा अपरम्पार।
मां भक्तों की रक्षा करने उतर धरा पर आई।
असुरों का जब भार बढ़ा था त्राहि त्राहि मम छाई
माॅं की होती है जयकारा जोती जले हज़ार।
उतर पहाड़ों से आईं माॅं महिमा अपरम्पार।
पावन निर्मल मन से जो भी माॅं की करता वंदन।
सच्चे मन पावन हृदय से जो करता अभिनन्दन।
मैया थाम लेती पतवार करती उसका बेड़ा पार।
उतर पहाड़ों से आईं माॅं महिमा अपरम्पार।।
चैत्र मास का शुभ पावन दिन मैया आई आंगन
आओ निर्मल हृदय से मिल माॅं का करते वंदन।
सच्चे भाव परख कर मैया कर देगी उद्धार।
उतर पहाड़ों से आईं माॅं महिमा अपरम्पार।।
लाख मुसीबत आए फिर भी रखना तुम विश्वास।
ममता की दरिया है मैया पूरण करती आस।
मन के भाव ना कलुषित करना रखना उच्च विचार।
उतर पहाड़ों से आईं माॅं महिमा अपरम्पार।।
नेह भाव की पूजा से ही ख़ुश होती जगदम्बे ।
हृदय में हो हर पल मैया कण कण में हो अंबे
मत दे दोष तू अब किस्मत को कर ले शुद्ध विचार।
उतर पहाड़ों से आईं माॅं महिमा अपरम्पार।
छोड़ नहीं विश्वास की डोरी मन में रख उल्लास।
जननी तो है दया की मूरत पूरीत करती आस।
दयासिंधु कहलाती अंबे जग की पालनहार
उतर पहाड़ों से आईं माॅं महिमा अपरम्पार।।
मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश