देश भक्ति

संगीता श्रीवास्तव
मेरे देश तुम्हे शतशत् नमामि, तुझपे कुर्बां मेरे तन ये प्राण।
जहां सुरज स्वर्णिम आभा ले ,रथ किरणों पे सज धज आए,
जहां संध्या दीपों से सजकर द्वार देहरी मुस्काए,
नहीं देखी ऐसी सुबह कहीं, नहीं देखी ऐसी कहीं शाम।
मेरे देश तुम्हे शतशत् नमामि।
जहां शैल के उत्तुंग शिखरों पे धवल मुकुट शोभा पाए,
ऋतुएं नवनव श्रंगार करें ,त्योहारों का डोला आए,
जहां भोर ऋचाओं से गुंजित, सुबह आरती सजे थाल,
मेरे देश तुम्हे शतशत् नमामि।
उनकी जिह्वा उगले अग्नि वो कलम नहीं तलवार बनीं,
कट गई गुलामी की बेड़ी, जनजन मे यूं हुंकार भरी,
उनके पावन बलिदानों से हमनें पायी ये आजादी,
वो आजादी के दीवाने तुझपे दिये अपने प्राण वार,
मेरे देश तुम्हे शतशत् नमामि।
जहां वाल्मीकि की जगी चेतना महाकाव्य ही रच डाले,
जहां गार्गी अपाला सम जन्मी विदुषी बालाएं,
नारि शक्ति की जयजयकार, है नारि शक्ति को नमस्कार,
मेरे देश तुम्हें शतशत् नमामि।
संगीता श्रीवास्तव
शिवपुर वाराणसी यू.पी.।