
__–बाल मुकुन्द द्विवेदी
दोस्तों से मिला कीजिये
कोई गिला हो तो कहा कीजिये
चुप्पी साधना हल नहीं है
जमकर झगड़ा किया कीजिये।
वो गालियाँ जो बचपन में
खुलकर दिया करते थे सबको
अब उन भूली हुई गालियाँ
कुरेद-कुरेदकर याद कीजिये।
कभी पीठ पर धौल लगा
झट से गले लगा लिया करते
फिर से दोहराईये वो गलती
माहौल को खुशनुमा बना दीजिये।
दोस्तों के साथ जुड़े किस्से
इतने दिनों में सब भूल गए होंगे
सामने आते ही अपनेआप
उन किस्सों को याद किया कीजिये।
अक्सर बुढ़ापे में भूलने की
बीमारी सबको होने लगती ही है
यदि चाहते हैं कि भूल न जायें
दोस्तों से मोबाईल पर बात कीजिये।
जो चले गये छोड़ तो क्या कहें
वो तो लौटकर कभी नहीं आने वाले
जो थोड़े बहुत बिखरे हुए हैं कहीं
बचे-खुचे की खबर तो लिया कीजिये।
पहले बात कौन करेगा न सोचें
दोस्तों में भला ऐसी तकल्लुफ क्यों
बस आगे बढ़िये पहल करने
फिर औरों की भी झिझक को तोड़िये।
आज आप यदि चूक गये तो
कल जाने फिर मुलाकात हो न हो
सबकुछ भुलाकर बचपन की
यादों को हँसी-खुशी ताजा कीजिये।
दोस्ती तो बचपन की होती है
जवानी में लोग मिल जाया करते हैं
इनमें अक्सर तो साथ वाले होते
जो निभाये सारी उम्र उसे याद कीजिये।
–बाल मुकुन्द द्विवेदी,
पटना।