साहित्य
दोहे
सृजन शब्द – कर्म
वीर रस
स्थायी भाव -उत्साह

1 कर्म राह पर चल पड़े,अपना सीना तान।
हम हैं प्रहरी देश के,सरहद अपनी जान।।
2 कर्म करो कुछ इस तरह, याद करे संसार।
देश भूमि पर वार दो, देह पुष्प हर बार।।
3 भारत माँ की गोद में, जाकर सोया लाल।
कर्म राह पर दीप बन,जलता उसका भाल।।
4 वंदन करता जग सदा, देशभक्ति वह कर्म।
दानव थर-थर काँपता,सैनिक करता कर्म।।
5कर्म तूलिका जब चले, बनता सुंदर चित्र।
श्रम का आँचल थाम ले, भाग्य बनेगा मित्र।।
6भारत माँ के सामने , काट दिया रख शीश।
शौर्य देख उस वीर का, अचरज करते ईश।।
7युद्धभूमि में डट गए, ऐसे वीर जवान।
जैसे पर्वत राज हो, अपना सीना तान।।
प्रीति चौधरी”मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश
मौलिक एवं अप्रकाशित।