साहित्य
नहीं मुझे कोई भाए

नहीं मुझे कोई भाए
पल पल याद सताए।।
मरना जीना तेरे संग
अब क्यों सितम ढाए।।
सुना है तुम दिलबर
अब क्यों सितम ढाए।।
बनकर कली दिल की
दिल अब क्यूं तड़फाए।।
जिंदगी में जब से आए
नखरे तुमने बहुत दिखाएं।।
यादों की बदली घिर आए
सुनी बाह कैसे दिखाए।।
सुरत तेरी हमे बहुत भाए
सदा तुम यूं ही मुस्कुराए।।
मुद्दत से नहीं देखा तुम्हे
सावन में बरसात आए।।
तुझे ख्वाबों में देखकर
भंवरा भी यूं ही मंडराए।।
काली घटा छाई जीवन
बदली अब क्यूं तरसाए।।
फूल खिले आंगन में
कलियां भी अब शर्माए।।
उसके बिना सब सूना
अंखियों में नींद न आए।।
कनक