
बृजकिशोरी त्रिपाठी
भारतीय संस्कृति विश्व की
सर्व श्रेष्ठ संस्कृति है।
यहा का जीवन पद्धति
बहुत सुन्दर नियम से
बधा है।
भारत मे माता.पिता
को ईश्वर जाने।
होत प्रात चरण रज
लेते।
सभी बडो़ को शीश
नवाते।
सूर्य देव को अर्घ चढाते
फिर इष्ट देव का करते
पूजा।
तब करते है काम दूजा।
ब्राह्मण का सम्मान करते।
उनको प्रणाम कर आशीश
पाते।
भोजन से पहले गऊँ ग्रास
देते।
बाद मे अपने भोजन करते।
अब भारत मे पश्चिमी
सभ्यताआया
सुबह उठ कर हेलो ,हाय
गुड मार्निग ।
बस माँ बाप से विदेशो
में बस इतना ही नाता है।
बदन पर नाम मात्र के
कपडे़ लेडिज के।
पुरूषों पर कोट, पैन्ट
सफारी है।
न कन्या का पता न
सुहागन का न सधवा
न विधवा।
नारी का सौदर्य तो कही
दिखता नही है।
भारतीय नारी नख शीख
तक श्रीगांर किये पूरे
बदन पर लपटें सारी।
हया शर्म से झुकी हुई
पलके अद्भुत सौदर्य
धारी होती है नारी।
एक बार पलट कर
जरूर हर मनुष्य
देखता है।
कहाँ इतना सुन्दर
सभ्यता और हम नकल
करते है ।
बदन उघारू सभ्यता
का जिस भी लेडी को
देखो तो शर्म से नजरे
झुक जाती है।
न इनमे शर्म हया है न
इनमे स्नेह वात्सल्य है।
इस पश्चिमी सभ्यता ने
भारतीय संस्कार को
प्रभावित किया है।
थोड़ा सा गिट पिट
अग्रेजी क्या बोलने लगे
अपने संस्कार ही छोड़
दिये है।
माँ बाबा का पैर छूना भूल
गये जबाब देना सीख लिए
सबेरे ईश्वर को अगर बत्ती
जलाते नही सिगरेट जला
कर वातावरण दूषित करते
है।
अब हमको अपने सनातन
धर्म भारतीय संस्कृति और
संस्कार को पाठ्यक्रम मे
पढा़ना चाहिए ताकी भारती
संस्कृति संस्कार अपने पूर्ण
गरिमा को प्राप्त करे।