
__प्रीति चौधरी”मनोरमा”
1
पृथ्वी भरती आह है, सुनकर देखो शोर।
दे दो वसुधा के वसन, होगी सुखमय भोर।।
2
धरा आज है रो रही, बढ़ती जाती पीर।
देख भूमि की दुर्दशा, नयनों बहता नीर।।
3
हरित वसन सब छीनकर, किया मनुज ने पाप।
बढ़ता जाता नित्य ही, वसुधा का संताप।।
4
बने अवनि फिर से हरित, यही हमारा ध्येय।
सद्कर्मों का हे मनुज,मिलता सबको श्रेय।।
5
सुनो ध्यान से आज तुम, पृथ्वी की चीत्कार।
कैसे हँसकर सह रही,हम- तुम सबका भार।।
प्रीति चौधरी”मनोरमा”
जनपद बुलंदशहर
उत्तरप्रदेश