
__डॉक्टर सबीहा रहमानी
कहां हो यार आये नहीं क्या ???? वसु अभी चंद मिनट पहले ही एयरपोर्ट पर कनाडा की फ्लाइट से उतरा था और अपने बचपन के दोस्त प्रखर को फोन लगाकर पूंछ रहा था ।
दूसरी ओर से प्रखर की आवाज़ आ रही थी…..
–बस बाहर आ गया हूँ यार तुम गेट नम्बर पांच से बाहर आ जाओ…!!!
वसु बाहर आ चुका था और सालों से बिछड़े दोस्त बहुत आत्मीयता से गले लगे अश्रुपूरित थे । प्रखर ने पूंछा…
“कैसे आना हुआ यार…????
वसु बोला…
–माई डियर अब कनाडा में मुझे नेशनेलटी मिल गई है… वहां अपना एक बंगला खरीद रहा हूँ, मम्मी-पापा रहे नहीं । यहाँ अब किसका आना-जाना होगा ???? इसीलिए सोच रहा हूँ पापा वाला पुराना मकान बेच दूं !!!
बातें करते हुए दोनों दोस्त उस पुराने घर तक आ गए थे….। सालों से आउटसाइड में रह रहे रामू काका वसु की अगुवाई के लिए खड़े थे । घर की साफ-सफाई देखकर वसु को अपनी मम्मी याद आ गईं…ज़रा सा फैला घर हो तो कैसे चिल्ला पड़तीं थीं..??? “
“तुम लोगों को ज़रा भी सलीका नहीं है, पूरा घर फैला दिया है…!!! और फिर पापा हमारा बचाव करते नज़र आते थे…
“हां…हां…तुम ठहरीं नवाबों के शहर लखनऊ की, सलीका तो सिर्फ हमारी बेगम को आता है…।” फिर सब हंस पड़ते, वसु घर में आते ही इधर-उधर घूमते- घामते मम्मी-पापा को याद कर सोच में मगन था कि कैसे मम्मी इस घर को करीने से सजायें रहतीं थीं…रामू काका ने आज भी उसे उतने ही सलीके से सजाए रखा है । ड्राइंगरूम में सजे फोटोफ्रेम और बचपन के फोटोज देख वसु रो पड़ा, प्रखर ने उसे सम्भाला तभी रामू काका आकर बताए की ब्रोकर किसी ग्राहक को लेकर आया है । वसु एकदम से तड़प उठा…. –नहीं….नहीं…रामू काका मैं इस मकान को नहीं बेचूंगा, कभी नहीं….!!! इसमें मेरे मम्मी-पापा की आत्मा बसी हुई है…मुझे यहाँ आकर उनके होने का एहसास हो रहा है…। मैं कभी अपना ये पुराना मकान नहीं बेचूंगा यार प्रखर ये मेरा पैतृक निवास है….मेरे मम्मी-पापा के प्रेम की निशानी है…!!!
ये कहते हुए वो अपने जिगरी दोस्त प्रखर के गले लगकर रो पड़ा….। शायद वसु बरसों से रोया नहीं था….अंदर सालों से बर्फ की तरह जमे आंसू पिघल रहे थे ।
डॉक्टर सबीहा रहमानी