__कैलाश चंद साहू

जब बरसता है किसी पर प्यार का संदल कभी
फूल बनकर लुभाता है प्यार भरा बादल कभी।।
पुष्प खिलता है जमी पर छा जाती हैं खुशबू
बहके सावन भाता है गौरी का काजल कभी।।
जब कभी जुदाई मिलती प्यार मुहब्बत में तब
जब तरसता है प्यार भरा अरमान बादल कभी।।
सावन की घटा करती हैं जब अठखेलियां तो
भीग जाता है तन बदन से खुशबू संदल कभी।।
करती हैं बैचेन तुम्हारी मधहोशिया घायल मुझे
कर देता है इश्क मुझे तुम्हारा कायल कभी।।
काश कर जाती है उसकी खुशबू घायल हमे यूं
हो जाता है दिल उसकी याद में पागल कभी।।
जिस प्यार की खातिर किया हमने जतन कभी
अरमा तोड़कर कनक मत करना घायल कभी।।
कैलाश चंद साहू
बूंदी राजस्थान