साहित्य
प्रकृति
हाइकू

अलका गुप्ता ‘प्रियदर्शिनी’
रूप अनूप
प्रकृति का सौंदर्य
छटा सुखद।
गहरी नदी
अथाह सा सागर
कूप तडाग।
गिरे पर्वत
झरने झर झर
शुभ सुंदर।
सुमन खिले
उपवन की क्यारी
भौंरे गुंजत।
शीतल वायु
बहती मंद मंद
सु सुगंधित।
पंच तत्वों का
समाहार प्रकृति
संगठित है।
जल पावक
गगन व समीरा
क्षिति गर्बीली।
पशु पक्षी है
अनगिनत रूप
चर अचर।
ऋतुएं छह
बदलती प्रकृति
मनमोहक।
ऋतु बसंत
है सबसे सुंदर
सरसों फूली।
सुंदर रूप
प्रकृति मनोहर
रक्षण चाहे।
अलका गुप्ता ‘प्रियदर्शिनी’
लखनऊ उत्तर प्रदेश।
स्वरचित मौलिक व अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।