प्रेमपत्र का वह ज़माना
कितना खूबसूरत था,
एक दूसरे को मनाना
शब्दों मे वह विश्वास की डोर
खीच लाती थी एक दूसरे की ओर
लिखने जो बैठते थे प्रेमी को खत
हर शब्द की खूबसूरती को ध्यान में रख
पढ़ लेते थे बार बार के कही लिख न दे शब्द गलत
वो डाकिया का पत्र लाना
खत पढ़ कर आंसूओ में खत का भीगना
प्यार के वह मीठे मीठे पल
इस डिजिटल लाइफ में…
“प्रेमपत्र का ज़माना” याद आते है आजकल।
- यशोदा प्रजापति
बैंगलोर
