
__संगीता श्री वास्तवा
प्रेम की सत्ता बहुत बड़ी है
बड़ी से बड़ी दीवार ढही है।
प्रेम है सागर का मोती,
प्रेय है आखों की ज्योति,
प्रेम आखों से लुढ़कती बूंद,
प्रेम सीने मे उठती हूंक।
प्रेम एक बहती धारा है,
जिसमें पग पगजीवन संवरा है,
टिकी है प्रेम,लिहाज पे दुनिया
वरना कौन किससे अबरा है।
आओ प्रेम के पौध लगाएं,
सघन जो होगें इनके साये,
महक उठेगा चमन हमारा,
चलो दिलों के भेद मिटाएं।
संगीता श्री वास्तवा
वाराणसी यूपी।