__प्रिया भाटी

बात अलग थी उस स्वाद की,
जो था दादी के खाने में।
एक निवाला उनके हाथों का,
अमृत था उस जमाने में।।
पूड़ी- कचौड़ी और जलेबी,
ऐसे ही पकवान अनेक।
खुशबू से महके था आँगन,
ललचाता मन उनको देख।।
बदला वक्त, जमाना बदला,
अब कहाँ वो बात रही!
भागम-भाग भरे जीवन के,
भोजन में वह बात नहीं।।
‘फास्ट फूड’ कहते हैं जिसको,
फैल गया वह जगह-जगह।
भूल गए हम अपना भोजन,
खाते हैं अब यही रोज सुबह।।
बच्चों को भाए स्वाद इसी का,
और जल्दी यह बन जाता है।
घंटो की मेहनत से बनता वह
पकवान अब किसे सुहाता है!!
मगर बन रहा यही चलन,
अब एक वजह बीमारी की।
सबसे अच्छा अपना भोजन,
जिसमें हैं खूबियाँ सारी ही।।
प्रिया भाटी
सहायक अध्यापिका,
संविलियन विद्यालय लुहारली,
दादरी, गौतम बुद्ध नगर,
उत्तर प्रदेश