
__मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश
गुल गुलशन गुलनार है बेटी
कुदरत का उपहार है बेटी
मादक अल्हड़ पुरवाई सी
शीतल पवन बयार है बेटी।।
मात तात के दुःख में शामिल
बेटों से बेटी है काबिल
खट्टी मुट्ठी सी रिश्तों की
भाव समर्पण प्यार है बेटी।।
बेटा बेटी में भाव ना करना।
कभी हृदय में घाव ना करना।
मात पिता का अंश है इसमें।
सम्मान की ये हकदार है बेटी।।
बिन बेटी घर सूना लगता।
कहीं ना घर में आभा लगता।
बेटी के बिन रौनक फीका।
ड्योढी की श्रृंगार है बेटी।।
बेटी हृदय हर्षाती है।
प्रेम सुधा रस बरसाती है।
महके बेटी से घर अंगना।
उत्कल गंगा धार है बेटी।
अन्नपूर्णा का रूप कहाती।
हंस के सारे गम पी जाती।
लाती संग तकदीर ये अपनी।
समझो मत की भार है बेटी।।
मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश