
__कात्यायनी कदम
टुकड़े-टुकड़े रोटी को
गुड़िया छोटी रोती है,
छः जनों के झोपड़े में
एक तवे पर रोटी है।
उठ सवेरे बेचे बच्चे
ले ठेले पर सब्जी साग,
क्या इतनी कमाई होगी
बुझ पाएगी पेट की आग।
मुनिया को बुखार हुआ
कहाँ मिले कोई उपचार,
डॉक्टर साहब मनमर्ज़ी के
कैसे उतरेगा बुखार।
अस्पताल में मारामारी
हो गई सुबह से शाम,
माँ न आई अबतक वापस
भूखे बच्चे पड़े बेजान।
छूए आसमां दाम दवाई
खतम हुए बचाए नोट,
कैसे आएगा आटा चावल
बेरहम मँहगाई की चोट।
मारे भूख से छटपट बच्चे
खा गए कुछ कच्चे साग,
हुए दस्त से रोगी सारे
आह! कैसा है जीवन अभाग।
मुनिया, छोटी, गुड़िया, सोना
चली छोड़ के दुनिया रोती,
छः जनों के झोपड़े में
भूखमरी अब चैन से सोती।
कात्यायनी कदम